जैसे जैसे अँधेरा बढ़ रहा था उसके उसके प्रयास और तेज होते जा रहे थे मैंने देखा अब उसके माता पिता दोनों मिलकर बच्चे को उठा रहे थे वो उसे ऊपर उठाते पर कुछ ऊपर जाते ही वो गिरने लगता वो फिर उसे नीचे रख देते पुनः फिर प्रयास करने लगते बड़ी मश्शकत कर रहे थे कोई रास्ता उन्हें दिखाई नही पड़ रहा था । में भी उनकी कोई मदद नही कर सकता था क्योंकि अगर में चिडया को छु भी देता तो गौरेया उसे कभी नही ले जाती । इसलिये में चुप चाप उसे देख रहा था ,बार बार प्रयास कर रही थी गौरेया अब काफी अँधेरा होने लगा था , और अचानक गौरेये ने बच्चे को जोर से पकड़ा और उर चली , बच्चा ची ची कर रहा था पर गौरेया ने उसे नही छोड़ा और वही एक पेड़ पर जाकर बैठ गई । में ये देख कर अचंभित रह गया की ये अचानक कैसे हो गया । जो सुबह से नही हो पाया था अचानक वो गौरेया कामयाब कैसे हो गई , उस बच्च्चे को ये पक्का विस्वास था की उसकी माँ उसे जरुर बचा लेगी । गौरेया को भी ये विस्वास था की वो अपने बच्चे को मरने नही देगी । और दोनों का विस्वास ही था की असंभव संभव हो गया वो वक्त रहते अपने जगह चली गई । बार बार, और एक बार, और एक बार करने की लगन, और मन में पुरा विस्वास लिए उस गौरेया ने मुझे वो सिखा दिया जो किसी स्कूल में मुझे बताया नही गया की मन की शक्ति क्या होती है विस्वास क्या चीज है , उम्मीद को कैसे जगा सकते है ,अपनी हार को कैसे जीत में बदल सकते है ,कैसे अपनी इच्छा शक्ति की सहारे असंभव संभव कर सकते है । सच कहू तो आज तक मैंने विस्वास की शक्ति को इतने करीब से नही देखा था , किताबों में पढ़ा था पर जीवन में पहली बार देखा वो भी एक नन्ही सी जान गौरेया को जिसने अपने बच्चे को बचाने के लिए ३०० से ज्यादा प्रयास किया और आखिरी तक करती रही जब तक उसने अपने बच्चे को बचा न लिया ।
Sunday, August 23, 2009
विस्वास " बड़े काम की चीज है "
कल रविवार को जब मै अपने बरामदे में बैठा हुआ था तो कही से एक गौरेया का बच्चा मेरे आँगन में आकर गिर गया । कुछ देर तो शायद चोट के कारन उसने कोई हरकत नही की पर कुछ ही मिनटों में वो जोर जोर से चीं चीं करने लगी और वही आँगन में फुदकने लगी । जैसे ही उसने चीं चीं करना शुरू किया दो गौरेया वहां आ गई और आँगन में नीचे उतर कर उस बच्चे को पुचकारने लगी दोनों गौरेया शायद उसके माँ और बाप थे । दोनों मिलकर बच्चे को आँगन की दिवार से पार करना चाहते थे , आँगन की दीवार उतनी ऊँची नही थी पर चिडिया चुकी काफी छोटी थी और शायद चोटिल भी इस कारन वो आँगन से निकल नही पा रही थी गौरेया अपने बच्चे को अपनी चोंच से पकड़ कर उड़ती पर बच्चा उसके चोंच से फिसलने लगता और गौरेया उसे पुनः वही छोड़ देती थी ऐसा करते करते २ घंटा हो गया पर दोनों असफल रहे । कुछ देर में एक चिडिया उड़ गई और एक वही आँगन की दीवार पर बैठी रही । लगभग २० मिनट बाद वो चिडिया वापस आपने मुंह में कुछ खाने को लाई और अपने बच्चे को खिलाने लगी । मुझे जाने क्या सूझा लगा की कही कोई बिल्ली उस बच्चे को खा न जाए इसलिए मै भी वही एक कुर्सी लगाकर बैठ गया और उनकी हरकते देखने लगा । बच्चे के मन मे ये विस्वास था की उनके माता पिता उसे वहां से जरुर निकल लेंगें । शायद इसी विस्वास के कारन वो सुबह से शाम तक ची ची करती रही । उसके माता पिता भी वही उड़ते रहते ,कभी उसे चोंच में पकड़ कर उड़ना चाहते पर कामयाब नही हो पा रहे थे , मैंने कोई गिनती नही की पर मुझे लगा की वो कमसे कम २०० बार जरुर प्रयास कर चुके थे , मुझे लगा रहा था की ये बेकार कोशिश कर रही है क्योंकि बच्चा इतना छोटा था की पंख भी नही फरफरा पा रहा था , पर उन तीनो की लगन देखकर मै हेरान था तीनो की हाव भाव ये बता रहे थे की वो रात होने से पहले कुछ न कुछ कर लेंगे । सूरज डूब रहा था , धीरे धीरे अंधकार फैल रहा था मेरे मन में भी उत्सुकता बढ़ रही थी की अब क्या होगा ।
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